Sunday, March 10, 2024

भक्तवत्सल राम : जटायु के राम


जटायु ने  माँ सीता को बचाने के प्रयास में, रावण के शरीर को चोंच के प्रहार से विदीर्ण कर डाला। इस पर रावण ने  क्रोधयुक्त होकर अत्यन्त भयानक कटार निकाली और जटायु के पंख काट डाले। जटायु महाराज धरती पर आ गिरे और पूर्णकाम, आनंद,अजन्मा और अविनाशी  ब्रह्म को राम राम राम ऐसा कह कर स्मरण  करने लगे।  


पूरकनाम राम सुख रासी। मनुजचरित कर अज अबिनासी॥

आगें परा गीधपति देखा। सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा॥

(अरण्यकाण्ड)


भला भक्त कष्ट में हो और दीनदयाल प्रभु उनको अपना आश्रय न दें - ऐसा हो सकता है ? 


कोई भी हो, धर्म का काम ही क्यों न हो, दो कामनाएं (दो पक्ष  )अधिकतर मन में  रहती हैं : या तो धन की या प्रसिद्धि की।  जटायु महाराज के दो पंख को इस रूप में भी माना जा सकता हो ।  जो कोई धर्म के मार्ग पर बिना किसी आकांक्षा के प्रवृत होता है उसे प्रभु अवश्यमेव अपने श्री चरणों में स्थान देते हैं।  

कृपा के सागर भगवान, नीलाम्बुजश्यामलकोमलाङ्गं राम अपने कर कमलों से जटायु जी के सर पर हाथ फेरते हैं, 


कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रघुबीर

(अरण्यकाण्ड)


भक्त के सर पर भगवान का हाथ हो , फिर कहाँ वेदना टिके ? 

जटायु जी को मुनियों के मन को भी हर लेने वाले श्री रामजी का मुख देख अपनी पीड़ा का आभास न रहा 

निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर

(अरण्यकाण्ड)


 गिद्ध माँसाहारी होते हैं और पक्षियों में सबसे अधम माने गए हैं। 

गीध अधम खग आमिष भोगी

(अरण्यकाण्ड)

 

परन्तु जटायु जी ने निष्पक्ष होकर स्वधर्म निभाते हुए अपने दोनों पक्षों को त्याग दिया  भला इससे ऊपर और क्या बलिदान होता ? भक्त वत्सल करुणामयी भगवान राम  ने अपनी गोद में जटायु जी को समेट लिया।  जिस गति की अभिलाषा योगी करते हैं वह आज गिद्ध महाराज जटायु जी को मिल रही थी , 


कोमल चित अति दीनदयाला। कारन बिनु रघुनाथ कृपाला॥

गीध अधम खग आमिष भोगी। गति दीन्ही जो जाचत जोगी॥

(अरण्यकाण्ड)

 


राम परम दयालु हैं अपने कमलनयन से झरते अश्रुओं से गोद में जटायु जी के घावों को सहलाया, जटायु जी के ऊपर धूल को अपनी जटाओं से साफ किया। 


गीध को गोद उठाये दयानिधि 

बारिद लोचन मैं बर भारी 

हाथ से पंख संभारत जात

जटायु की धूरि जटाओं से झारी।। 


भगवान राम कोमल हृदय हैं और जटायु जी से कहते हैं कि आप अपना शरीर बना के रखिये 

राम कहा तनु राखहु ताता। मुख मुसुकाइ कही तेहिं बाता

(अरण्यकाण्ड)

 

तब  जटायु जी प्रत्युत्तर देते हैं मरते  समय जिनका नाम मुख में आ जाने से अधम भी मुक्त हो जाता है

जाकर नाम मरत मुख आवा। अधमउ मुकुत होइ श्रुति गावा

(अरण्यकाण्ड)

 वह कहते हैं अब इस से ऊपर और क्या कामना हो जिसके लिए यह देह रहे  ? 

सो मम लोचन गोचर आगें। राखौं देह नाथ केहि खाँगें॥


भगवान भक्तों से प्रेम करते हैं भला उनको अपने धाम ले जाए बिना उन्हें चैन कहाँ ? और कृपा सिंधु राम कहते हैं जिनके मन में दूसरे का हित बसता है, उनके लिए जगत् में कुछ भी (कोई भी गति) दुर्लभ नहीं है। हे तात! शरीर छोड़कर आप मेरे परम धाम में जाइए। मैं आपको क्या दूँ? आप तो सब कुछ पा चुके हैं 


हित बस जिन्ह के मन माहीं। तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीं॥

तनु तिज तात जाहु मम धामा। देउँ काह तुम्ह पूरनकामा॥

(अरण्यकाण्ड)

 



और जटायु जी भगवान राम की गोद में  अखंड भक्ति  का वर माँगकर अपना प्राण त्याग देते हैं और प्रभु राम उनके अंत्येष्टि  करते हैं ? यह हैं भक्त वत्सल राम 


बिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम।

तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम।। 

(अरण्यकाण्ड)

 


और जैसा भगवान कृष्ण ने भगवद गीता में कहा 


अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् |

य: प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशय: ||

(भगवद गीता)


अंत काल में जटायु जी ने सिर्फ एक राम नाम का आलम्बन लिया  और परम गति पायी , भगवान के आश्रय में जटायु ने  गिद्ध का देह त्याग दिया| हरि का रूप धारण कर अनुपम वस्त्र और आभूषण से सुशोभित हो कर परमधाम को प्रस्थान कर गए 


गीध देह तजि धरि हरि रूपा। भूषन बहु पट पीत अनूपा॥

स्याम गात बिसाल भुज चारी। अस्तुति करत नयन भरि बारी॥

(अरण्यकाण्ड)

 


कलियुग में केवल नाम ही आधार है, आइये राम नाम की महिमा गाते हैं  




शिव जी पार्वती  से कहते हैं कि  वे लोग अभागे हैं, जो भगवान् को छोड़कर विषयों से अनुराग करते हैं।

सुनहू उमा ते लोग अभागी। हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी।


तुलसीदास जी सत्य ही कहा है कि जो राम नाम का सहारा लिए बिना ही परमार्थ और मोक्ष की आशा करता है, वह तो मानो बरसते हुए बादल की बूँदों को पकड़कर आकाश में चढ़ना चाहता है (अर्थात् जैसे वर्षा की बूँदों को पकड़कर आकाश पर चढ़ना असंभव है, वैसे ही राम नाम का जप किए बिना परमार्थ की प्राप्ति असंभव है)।


राम नाम अवलंब बिनु, परमारथ की आस। 

बरसत बारिद बूँद गहि, चाहत चढ़न अकास॥


माला लेकर किसी मंत्र-विशेष का जाप करने से तथा मस्तक एवं शरीर के अन्य अंगों पर तिलक-छापा लगाने से तो एक भी काम पूरा नहीं हो सकता, क्योंकि ये सब तो आडंबर मात्र हैं। कच्चे मन वाला तो व्यर्थ ही में नाचता रहता है, उससे राम प्रसन्न नहीं होते। राम तो सच्चे मन से भक्ति करने वाले व्यक्ति पर ही प्रसन्न होते हैं।


जपमाला छापैं तिलक, सरै न एकौ कामु। 

मन-काँचे नाचै वृथा, साँचै राँचै रामु॥ 


हृदय में निर्गुण ब्रह्म का ध्यान, नेत्रों के सामने सगुण स्वरूप की सुंदर झांकी और जीभ से सुंदर राम-नाम का जप करना। तुलसी कहते हैं कि यह ऐसा है मानो सोने की सुंदर डिबिया में मनोहर रत्न सुशोभित हो।


हियँ निर्गुन नयनन्हि सगुन, रसना राम सुनाम। 

मनहुँ पुरट संपुट लसत, तुलसी ललित ललाम॥ 


इति श्री 





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