Thursday, April 2, 2020

मेरे राम

सुनो .....

उसने सहसा मुझसे पूछा......... 

माँ क्या गुनगुनाती हैं सुबह ....... 

असीम सी शांति का भान होता है ,मानो मेरे अस्तित्व का जुड़ाव हो ! क्या है जो रोज़ जाती हैं , मैंने सुना है बचपन से ,यह वही राग है ,वही धुन है ,मुझमें घुली मिली है ! इस भाग दौड़ के जीवन में जब शांत होती हूँ ,यह मधुर धुन गुंजन करती है मेरे हृदयांतर में .......

मैंने झट उत्तर दिया ......

राम स्तुति है ये पूर्वा 

पूर्वा हमेशा शांत ही रहती है पर सुनते ही वह भी सुर मिलाने लगी माँ से ..... 

हाँ सुदीप राम स्तुति ! और उसकी ख़ुशी का कोई ठिकाना कहाँ रहा !
मैं जबसे उसे जाना है ,देखा है जब उसका मन हर्षित होता है....... उसका चेहरा दमक उठता है और वह गाने लगी ....... 

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं,
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं 

पूर्वा में  मानो एक नयी ऊर्जा आ गयी , सुदीप मैं कहती थी न ,मेरी प्रीति  सदैव राम में रही है ...... 
जानते हो , मेरे राम मेरे मन में हैं ...... 
एक मूरत हैं उनकी, बचपन से सहेज रखी है ..... मन के एक कोने में ..... 
कितने बरस बीत गए ..... मेरे राम वैसे ही हैं .....  मेरे पापा  कहानियों में  जो  श्री राम सिया जुगल जोड़ी आज भी वहीँ है !कितनी कहनियाँ कितनी कल्पनाएं बचपन में की होंगी।  कितने ही घर बनाये कल्पना की उड़ान में ,कितने ही बार वह झूला और खेत सोचा , वह कल्पनाएं भूली तोह नहीं हूँ पर समय के साथ वह भीनी होती जा रहीं हैं ...... 
पर मेरे पापा की कहानियों के वह राम ,उनकी आवाज़ आज भी वही गुंजित होती हैं कानों मैं ,
बड़ी हुई तब  जाना , राम तो , मर्यादा पुरषोत्तम हैं , जानकी  वल्लभ हैं ,राम  शबरी के हैं तो करुणा हैं ,हनुमान  और तुलसी के हैं  तो इष्ट हैं ! 
जब जाना राम दीखते  हैं तो धनुष बाण के साथ ! पर कितने कोमल हैं ,भला अगर मानव रूप मैं यह हैं ईश्वर ,तो  कौन न  करेगा प्रेम सियापति राम से........ 

फिर एक दम से गुनगुनाने लगी ..... 

सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं,
आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं।

जानते हो हमारे कमरे मैं मेरे पूजा के आले में जो राम हैं , वह सब कुछ हैं मेरे ,मेरी तुम्हारी कहानी के साझेदार ! सब जानते हैं वो , मेरे राम..... 

राम किसके नहीं हैं , भारत के राम ,कौसल्या के राम ,सिया के राम ,केकयी के राम ,हनुमान के राम ,उस नन्ही गिलहरी के राम ,लक्ष्मण के भ्राता राम ...... मेरे भी राम हैं , वही राम , मेरे कल्पना के राम , नन्ही बुद्धि में जो सहेजे थे वही राम .... मुझे श्लोक नहीं आते ,भजन भी इतने नहीं ! बस मेरा प्रेम अनन्य है उनके प्रति !मेरे अस्तित्त्व में बसे ,किसी से भी प्रीति कर लेने वाले एक कोमल हृदयी पुरुष की कल्पना ही राम हैं ! झूठे बेर खा लेने वाले करुणामयी राजा राम ! अपनी पत्नी के वियोग में रोते   , मानव लीला करते ,पति राम ! 
 कौसल्या को मुख मैं ब्रह्माण्ड दिखा देने वाले परात्पर ब्रह्म राम ! मेरी हर श्वास में बहते राम !

प्रकृति के कण कण में मेरे राम , सुदीप ! प्रेम तत्त्व के प्रतीक मेरे राम ,संतोष गरिमा मर्यादा और धैर्य के प्रतीक   मेरे राम ! रावण वध कर सत्य को स्थापित करते मेरे मर्यादा पुर्षोत्म वीर राम ! योद्धाओं में श्रेष्ठ मेरे राम ! 
क्या मनुष्य ,क्या वानर ,क्या आदिवासी ,क्या केवट ,सबको स्नेह से हृदय लगाते मेरे राम ! भेदभाव छुआ छूत से कोसों दूर मेरे राम !

नवीन नील-सजल मेघ जैसे सुन्दर मेरे राजीव लोचन राम 

और फिर एक दम से धुन मिलाती पूर्वा  बोली ...... 

एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली,
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली.

आह ! गौरी पूजा मेरी सिया के सुंदर सांवले राम !

सुदीप उसने आहिस्ता  मेरे कंधे पे सर रख बोला ..... 

मेरे राम तुम्हारे राम ,हम सब के राम !

हर काल में शाश्वत एक मेरे राम !

Wednesday, April 1, 2020

सुमन

सुमन

मैंने ईश्वर से पूछा इक रात , निष्ठुर है क्यों तेरा न्याय 
निर्जन हुआ बसंत , बिना  'सुमन' कैसे हम बताएं ?
प्रेम करुणा सरलता की थी  'सुमन '  पर्याय ,
कुछ बातें अधूरी रह  गयीं ,कैसे कहाँ पहुंचाएं ?

अब  अधूरे शब्द हैं कुछ ,निर्वात सा  पसरा है मौन ,
स्नेह, ममत्व, निश्छल  प्रेम की धारा बहाये  कौन ?

कुछ निष्प्राण  शब्दों को पिरो कविता बनाये कौन ,
जो सुनता था , उल्लास से , अब है  वहां कैद मौन ?

करुण क्रंदन ,न प्रार्थना का है कोई न्याय ,
कर्म बड़ा ,या ,प्रारब्ध  बड़ा कोई यह  बतलाये 

तर्क वितर्क के बीच  ,सहसा मुस्काती माँ दिखी , 
आभा फैली मन में ,बही पवन स्नेहिल स्पर्श सी 

है प्रेम इतना प्रगाढ़ बोली ,लौटेंगे फिर रंग ,
'सुमन' बन फिर  लौट आउंगी मैं तुम्हारे अंक |