Sunday, October 12, 2014

कंकरीट

कंकरीट का जंगल बन जाएगा ये शहर
सूखी नदी मे बहेगा रसायन का जहर ।

आखिरी पेड़ कहीं लड़ेगा  ज़िन्दगी की जंग ,
धुआँ  समेटे आसमां लगेगा बेरंग।

उसी पेड़ पर आखिरी घोंसला होगा ।
 शायद कभी ये आशियाना भी गुलज़ार रहा होगा ।

कुछ  कटे  पेड़  के  जड़े ,  डामर के नीचे सिसकियाँ भरती  होंगी ,
अपने अस्तित्व की टूटी साँसों से जंग लड़ती होंगी ।

ख़ामोशी की चादर ओढ़े ,आसमां लगेगा वीरान ,
अब न  दिखेगी पंछियों की मुक्त उड़ान ।

उजड़े जंगल ,बिछड़े साथी ,टूटे आशियाना ,शहरी चकाचौंध  की चम चम ।
इतनी रोशनी की नन्हे पक्षी जाएंगे सहम ।
अपनी माँ से बिछड़ ,भूखा प्यासा ,किसी बहुमंजिला की छत पे तोड़ेंगे  दम ।


कंकरीट के  उस शहर में कंकरीट का मंदिर होगा ,
किसी  का आशियाना  उजाड़, पत्थर की मूरत से ,
वो , अपने सर छत के ख्वाहिश करता होगा ।

फिर उसी शहरी दुनिया में भागता होगा ,
न हँसता होगा, न रोता होगा ।
बस भौतिकता के सपने बुनता होगा ,
 ऊँची ऊँची बहुमंजिला में अपना जीवन तलाशता होगा ।

फिर कहीं दूर और  पेड़ों की ,पहाड़ों  की कटाई होगी,
फिर और पंछियों के घोंसले जाएंगे उजड़ ,
पहाड़ों पे आश्रितों के सपने जाएंगे बिखर ,
चीटियों का ठीला फिर जाएगा डह ,
आदमी की हैवानियत से फिर फैलेगा भय ।

फिर उन्ही खूनी हाथों से आशियाँ साजाएगा ,
उन्ही  खूनी हाथोँ से मन्दिर जाएगा ,
रास्ते पे चलते न जाने कितनी ,
चीटियों की जीने की मुराद कुचल के ,
पत्थर के देवता से अपनी खुशहाली चाहेगा ।

भौतिकता से ना  मिली किसी को ख़ुशी ,
फिर भी बेकार कोशिशों से मन को बहलाएगा ।
फिर उसी कंकरीट की बस्ती में दमघोटू जीवन चलाएगा ।
आहों और सिसकियों से भरे शहर में बेमानी मुस्काएगा ।

आँखों में नहीं रहेगा संवेदना का पानी ,
सब कुछ खो के भी  हंसेगा हंसी खिसियानी ।

कंकरीट की दुनिया में श्रापित जीवन जीता रहेगा ,
अपनी फतह पर घमण्ड कर हँसता रहेगा ,
अंदर से तिल तिल कर मरता रहेगा ,रोता रहेगा ।

कंकरीट की चारदीवारी में धड़केगा कंकरीट सा दिल
कंकरीट के चाहरदीवारी में कैद रहेगा उस का मुस्तकबिल ।

प्रेम आकुल होके जब फफक फफक के रोयेगा जब उसका दिल ,
याद आएगा उसको तब ,पहाड़ पे था एक चूहे का बिल ।
याद आएगा वह टूटा घोंसला , याद  आएगा वोह कटता  पेड़ ।
नोच नोच के पत्तियों को जब उसको किया निर्वस्त्र ,
सोचेगा , उसके बारे में , तब इंसानी गुमान होगा ध्वस्त ।

कंकरीट की दुनिया में फिर जाएगा वह खो ,
कंकरीट के उन ढांचों एक रात फिर जाएगा सो ।

इंसानी माया से चमकता शहर में हो जाएगा हालाँकि मस्त ,
क्रंदन करता ह्रदय , ग्लानि से भरी सूखी आँखें , से जीवन रहेगा त्रस्त ।