Thursday, March 21, 2019

हमारी पहली होली

होली......... हमारी पहली होली ....... यूँ तो मैं कभी होली ज़्यादा नहीं खेला बचपन के बाद पर इस बार बात कुछ और है , मन में फिर रंग जाने की ख्वाहिश हो आई है। गुलाल के रंग हर साल देखें तो हैं , पर इस बरस रंगो की छटा अलग ही है। इस बार मानो इनकी चमक मैं कुछ चटक रंग मिल गया हो जैसे।  रंग बाँध रहा हो जैसे ऐसा लग रहा है। रंगों में मानो हमारा  प्यार चमक रहा है जैसे। इस गहराते प्यार के लिए हमने सालों धैर्य रखा ,अपने प्यार को बाँध के रखा , कभी नाज़ुक वक़्त आया तो अपने विश्वास की डोर से बाँध के रखा , कभी किसी की नज़र नहीं लगने दी। बस प्यार में तुम और में कब इतने एक हो गए यह सच बोलो तो पता नहीं चला। 
आज उस गहराते प्यार का त्यौहार है।  सुना तो मैंने यही है कि प्यार का खेल होता है यह।  रंगों में डूबते हुए प्यार को देखने मैं होता है। पर सुना ये भी है कि सारी कडवाहट चोट भूलने का है होली।
मन तो कर रहा है ,अपनी जान को रंगों में सराबोर होके सब कुछ भूल कर , एक लम्बी सांस भर के गले लगा लूँ।
रंगों में नहायी  पूर्वा ........ कितनी सुन्दर लगेगी।
लाल मुझे याद दिलायेगा मुझे हमारा पहला साथ
पीला तो कैसे भूलूँ , मेरे प्यार का पहला रंग है वह !
नीले में तो सागर सी गहराई दिखती है हमारे प्यार की ,
और हरा देखता हूँ , तो याद आता है तुम्हारा छाँव देता आँचल !