Sunday, June 15, 2014

दस्तक

दबे  पाँव लांघ आया ,कोई मेरे दिल की चौखट,
अनजान सी ,पर अपने से ,की है आहट ।

किसी स्नेही की कामयाब होती कवायद ,
रोम रोम को हर्षाते ,मीठे एहसासों की आमद ।

अंतर्मन के सूखे आँगन में ,सावन की सी  रिमझिम ,
अंतर्द्वंद्व की तपिश , में ,ठण्डक देते ये मरासिम । 

दिल की तंग गलियों में आजकल ,नई है रौनक ,
स्वप्निल लम्हों को ,हकीकत होता देख ,छाई अजीब सी सनक ।

बदले बदले से लगने लगे अब रुझान ,
उद्वेलित होती भावनाओं का उफान ।

लगे ,जैसा नए परिंदों की आसमां में पहली उड़ान ,
पहली बारिश में लगे जैसे पत्तों में नई जान ।

बसंत  में  जैसे  नयी कोपलों का फूटना ,
आम के पेड़ पे कोयल का कूकना ।

जैसे बारिश का पानी छपकाते ,बच्चों के चेहरों ,पे चमक ,
नए नए फूलों की खुशबू ,जैसे बाग़ उठे महक ।

जैसे सूरज की असंख्य कीर्ति रश्मियों से दमके पूर्वा ,
जाड़े के मौसम में ,ओस की ,बूंदों से चमके दुर्वा ।

जादुई ,उसकी ,बातों  का होने लगा है मादक असर ,
जबसे दिल के रास्ते ,किया शुरू ,उसने मेरी रूह का सफर ।

खुद से ज़्यादा होने लगा ,उसपे इख़्तियार ,
जिन्दंगी में भर गये नए रंग ,जीना लगे खुशगवार ।

मन की गहरी परतों में ,सेंध लगाता उसका  चेहरा गुलफाम ,
बेखुद दिल में पैदा हुआ ,उसके लिये एहतराम ।

सोचता हूँ ,खुशकिस्मत हूँ ,जो प्रकट हो गए उद्गार ,
न 
,तो भटकता मन यूँ ही रोता बेज़ार ।

घुट  घुट के या ,तो मरता एक और सच बेमौत
अगर दब जाता ,तो टीस बन उमड़ उमड़ के आता लौट I


कुंठाग्रस्त ,यूँ ही ,विचरता में तर्षित ,
एकाकीपन ,में ,मर्म होता निरंतर खंडित ।

और ,हो जाती दिल के दरो दीवार जीर्ण ,
सन्नाटा यूँ ही पसरा रहता विस्तीर्ण ।
न  मिलता यूँ उसके स्नेह का सम्बल ,
जीवनपथ यूँ ही लगता ,और ,कंटकाकीर्ण ।

टूटे हौसलों को न मिलता उसके प्यार का मरहम ,
तन्हाई के थपेड़े ,से,उद्विग्न मन ,और हो जाता बेदम ।

उसके भरोसे ने सीखा दिया हार स्वीकारना सहर्ष ,
संघर्ष न हो तो ,जीवन में नही मिलता उत्कर्ष ।

हार की तमिस्त्रा में यूँ ही झुका रहता मेरा मस्तक ,
जो ना दी होती ,उसने मेरे दिल पे दस्तक ॥