Sunday, May 19, 2019

The Study - My School !

ईंटो  क़े ढाँचे से रिश्ता है पुराना ,
नादान ख्वाहिशों का शहर था अनजाना ।

पापा की उँगलियों को छोड़ लांघी जब इसकी दहलीज़।
छोटे से हाथों से थामी टीचर की कमीज़ ।

अनजानों की दुनिया लगी थी तब ,
कुछ नन्हे से औरों को देखा था  जब ।

यूँ सीमित था , तब रिश्तों का ज्ञान ,
ये अनजाने बनेंगे अपने ,नहीं था भान ।

जाने कब यारी ली सीख हमने ,
हंसी- ठहाकों से बातें लगी जमने ।

टीचर की डांट लगा करती  थी बुरी ,
कोमल सा मन फिर भी नहीं बनाता था दूरी ।

टीचर के मन जगह बनाना ,
उनके स्नेह के काबिल बन जाना ।

जब कोई कह देता था बातें चुभने वाली ,
रूठ के बैठ जाया करते थे खाली ।

फिर हंसी में,  रूठे मन में बहार आ जाना ,
घुल मिल के सबमें,फिर  खुश हो जाना ।

सोचता हूँ भूल आया हूँ खुद को उस गैलरी में,
जहाँ हँसा था मेरा बचपन ,
 जहाँ कैशोर  ने  झाँका था मुझ में ।

एक दूर मैदान में छोड़ आया खून पसीने के बूँद
सोचता हूँ कभी समेट आऊँ उस मिट्टी को जहाँ छोड़ आया सब कुछ....




















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