Wednesday, April 1, 2020

सुमन

सुमन

मैंने ईश्वर से पूछा इक रात , निष्ठुर है क्यों तेरा न्याय 
निर्जन हुआ बसंत , बिना  'सुमन' कैसे हम बताएं ?
प्रेम करुणा सरलता की थी  'सुमन '  पर्याय ,
कुछ बातें अधूरी रह  गयीं ,कैसे कहाँ पहुंचाएं ?

अब  अधूरे शब्द हैं कुछ ,निर्वात सा  पसरा है मौन ,
स्नेह, ममत्व, निश्छल  प्रेम की धारा बहाये  कौन ?

कुछ निष्प्राण  शब्दों को पिरो कविता बनाये कौन ,
जो सुनता था , उल्लास से , अब है  वहां कैद मौन ?

करुण क्रंदन ,न प्रार्थना का है कोई न्याय ,
कर्म बड़ा ,या ,प्रारब्ध  बड़ा कोई यह  बतलाये 

तर्क वितर्क के बीच  ,सहसा मुस्काती माँ दिखी , 
आभा फैली मन में ,बही पवन स्नेहिल स्पर्श सी 

है प्रेम इतना प्रगाढ़ बोली ,लौटेंगे फिर रंग ,
'सुमन' बन फिर  लौट आउंगी मैं तुम्हारे अंक | 


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