शायद
कभी अनायास यूँ ही बह निकलें आंसू बहने दो उन्हें
अन्वेषण को जगह मत दो ,कारण पता ना चले शायद
कि सालों से स्वयं को छिपाए ,ख़ुद को भूल गए हो शायद
भय ,झूठ ,अहम् के लिबास ने ह्रदय ढक लिया हो शायद
बहने दो इन्हें ,चेष्ठा न करो ,ना रोको इन्हें
इस अंतर्द्वंद्व में समपर्ण ही रास्ता दिखाए शायद
कि कोई आकाँक्षा का दम घुटा हो ,
वो अपना एहसास करा रही हो शायद
कि कोई दर्द छुपा बैठा हो अंदर ,टीस मार रहा हो शायद
अपमान ,अपयश ने छलनी किया हो ह्रदय,
आज अश्रु धो दें इन्हें शायद
कठोर बन ,जीवन जिया ,कोमल बनके देखो ,जीवन सहज बन जाए शायद
कि कोई काँटा धंसा हो अंदर ,नासूर बन गया हो घाव शायद
कभी कोई आशंका प्रबल हुई हो ,उसका सामना चुप रहकर किया हो शायद
कभी उजाले को हारते ,तमस ने ह्रदय ढका हो और तुमने आँखें मूंदी हो शायद
कि किसी की बेबसी को नज़र अंदाज़ किया हो तुमने शायद
अन्याय के विरोध में ईश्वरीय अनुकम्पा की अपेक्षा विफल हुई हो शायद
कि प्रार्थना ने प्रारब्ध के आगे घुटने टेके हों शायद
अकेलेपन के साए में किसी की कमी खली हो शायद
प्रेम व्याकुल मन कभी यूँ ही तड़पा हो शायद
विरह का गरल कभी ह्रदय में उतारा हो शायद
तो आज उन्मुक्त कर दो लज्जा की बेड़ियों से खुद को ,
कि ये न सोचो कोई क्या सोचेगा
खोल दो अपने दिल की अँधेरी कुटिया ,जहाँ समेटा है तुमने ये सब
अश्रु की बाढ़ ,बहा ले जायेगी शायद ||
कभी अनायास यूँ ही बह निकलें आंसू बहने दो उन्हें
अन्वेषण को जगह मत दो ,कारण पता ना चले शायद
कि सालों से स्वयं को छिपाए ,ख़ुद को भूल गए हो शायद
भय ,झूठ ,अहम् के लिबास ने ह्रदय ढक लिया हो शायद
बहने दो इन्हें ,चेष्ठा न करो ,ना रोको इन्हें
इस अंतर्द्वंद्व में समपर्ण ही रास्ता दिखाए शायद
कि कोई आकाँक्षा का दम घुटा हो ,
वो अपना एहसास करा रही हो शायद
कि कोई दर्द छुपा बैठा हो अंदर ,टीस मार रहा हो शायद
अपमान ,अपयश ने छलनी किया हो ह्रदय,
आज अश्रु धो दें इन्हें शायद
कठोर बन ,जीवन जिया ,कोमल बनके देखो ,जीवन सहज बन जाए शायद
कि कोई काँटा धंसा हो अंदर ,नासूर बन गया हो घाव शायद
कभी कोई आशंका प्रबल हुई हो ,उसका सामना चुप रहकर किया हो शायद
कभी उजाले को हारते ,तमस ने ह्रदय ढका हो और तुमने आँखें मूंदी हो शायद
कि किसी की बेबसी को नज़र अंदाज़ किया हो तुमने शायद
अन्याय के विरोध में ईश्वरीय अनुकम्पा की अपेक्षा विफल हुई हो शायद
कि प्रार्थना ने प्रारब्ध के आगे घुटने टेके हों शायद
अकेलेपन के साए में किसी की कमी खली हो शायद
प्रेम व्याकुल मन कभी यूँ ही तड़पा हो शायद
विरह का गरल कभी ह्रदय में उतारा हो शायद
तो आज उन्मुक्त कर दो लज्जा की बेड़ियों से खुद को ,
कि ये न सोचो कोई क्या सोचेगा
खोल दो अपने दिल की अँधेरी कुटिया ,जहाँ समेटा है तुमने ये सब
अश्रु की बाढ़ ,बहा ले जायेगी शायद ||
No comments:
Post a Comment