हमारी स्थिति ऐसी होती है कि जब कोई कहे ब्रह्म सत्य जगत मिथ्या हमें बहुत रोमांचक लगता है. ऐसा लगा है हम नाव में और भवसागर पार हो रहा है. यह एक उच्चतम गति है कि हम इस भाव में स्थित हो जाएँ :-
सर्वं खल्विदं ब्रह्म तज्जलानिति शान्त उपासीत। अथ खलु क्रतुमयः पुरुषो यथाक्रतुरस्मिल्लोके पुरुषो भवति तथेतः प्रेत्य भवति स क्रतुं कुर्वीत॥
परंतु किसी धार्मिक पुरुषार्थ और बिना वैराग्य के ये मात्र सुंदर वाक्य लगेगा. मानो बिना षट् सम्पति पुष्ठ हुए या किसी शमशान वैराग्य के चपेट में आकर ऐसा सोच हम नाव से उतरें यह सोच कर कि भवसागर पार हो गया तो निश्चित ही हम डूब जायेंगे.
अब लगेगा ये कैसे पार होगा तो भगवान् की शरण में जाएँ और अभ्यास करें और प्रेरित करें खुद को इस संसार की नाश्वरता के प्रति
असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् |
अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते||
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