पहले प्यार की पहली कविता,
दिल्ली की सर्दी में पहला वो पहली रात
जब पूरी रात तुमसे की थी वह अनोखी बात
साथ जीना मरना उठना गिरना हँसाना
दूर मोबाइल पर की तुमसे की वह पहली बात !
कितना मासूम होता है न पहला प्यार भी. ......
सोचता हूँ तय करें एक रास्ता , अब साथ
चलें कहीं दूर ,थाम के ,इक दूजे का हाथ।
चलें कहीं दूर ,थाम के ,इक दूजे का हाथ।
शायद हमारे परस्पर पनपते प्रेम को तांके,
एक वीरान पगडंडी
अपने आने की आहट को
सालों से रही है भांप
क्यूँ न चलें उस राह
छोड़ आएं अपने पैरों की छाप।
एक वीरान पगडंडी
अपने आने की आहट को
सालों से रही है भांप
क्यूँ न चलें उस राह
छोड़ आएं अपने पैरों की छाप।
जहां कोई न हो , न अपना , न ही पराया ,
सोचता हूँ काश ! होता बस में,
तो छोड़ आते अपनी परछाई भी ,
सोचता हूँ काश ! होता बस में,
तो छोड़ आते अपनी परछाई भी ,
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