प्रथम गुरु
माँ ने सिखाया उलटना पलटना ,
उसने सिखाया चलना सम्भलना,
करवट लेना ,बैठना ,और बोलना ।
नन्ही टांगों की कंपकपाहट को थामना ,
गिरना ,रोना,फिर ,उठना और चल पड़ना ।
सिखाया उसने, हंस के हार स्वीकारना ।
भीगी आँखों से हंसना ,खिलखिलाना ।
सिखाया उसने नितत संघर्ष है ज़िन्दगी ,
निः स्वार्थ प्रेम ही एकमात्र बन्दिगी ।
उसके आँचल में मिला स्वरों का ज्ञान ,
थपकियों ,लोरियों ने सहज ही करा दिया संगीत का भान ।
उसके होठों को देखा तो ,सीखा ,बोलना ।
साड़ी पकड़कर अनायास ही ,सीखा ,खड़ा हो पाना ,
अंगुली थाम के टेढ़े मेढ़े क़दमों से चल पाना ।
सिखाया उसने क्या होता ,अपनों का संबल ,
खुद ,ठिठुरते ,रात को ,उड़ाया जब अपने हिस्से का कम्बल ।
सिखाया उसने प्रकृति भी है परिवार ,
हसीं बातों ने उसकी ,सिखाया ,छोटा नहीं संसार ।
रँगे हाथों जब पकड़ी उसने ,पहली चोरी ,
सीखा गई बहुत कुछ ,उसकी ,गुस्साती आँखें कोरी ।
सिखाया उसने शैशव में ही बहुत कुछ अनजान ,
याद करो आज उस प्रथम गुरु का एहसान ।
माँ ने सिखाया उलटना पलटना ,
उसने सिखाया चलना सम्भलना,
करवट लेना ,बैठना ,और बोलना ।
नन्ही टांगों की कंपकपाहट को थामना ,
गिरना ,रोना,फिर ,उठना और चल पड़ना ।
सिखाया उसने, हंस के हार स्वीकारना ।
भीगी आँखों से हंसना ,खिलखिलाना ।
सिखाया उसने नितत संघर्ष है ज़िन्दगी ,
निः स्वार्थ प्रेम ही एकमात्र बन्दिगी ।
उसके आँचल में मिला स्वरों का ज्ञान ,
थपकियों ,लोरियों ने सहज ही करा दिया संगीत का भान ।
उसके होठों को देखा तो ,सीखा ,बोलना ।
साड़ी पकड़कर अनायास ही ,सीखा ,खड़ा हो पाना ,
अंगुली थाम के टेढ़े मेढ़े क़दमों से चल पाना ।
सिखाया उसने क्या होता ,अपनों का संबल ,
खुद ,ठिठुरते ,रात को ,उड़ाया जब अपने हिस्से का कम्बल ।
सिखाया उसने प्रकृति भी है परिवार ,
हसीं बातों ने उसकी ,सिखाया ,छोटा नहीं संसार ।
रँगे हाथों जब पकड़ी उसने ,पहली चोरी ,
सीखा गई बहुत कुछ ,उसकी ,गुस्साती आँखें कोरी ।
सिखाया उसने शैशव में ही बहुत कुछ अनजान ,
याद करो आज उस प्रथम गुरु का एहसान ।
No comments:
Post a Comment