Wednesday, February 18, 2015

साझे का रिश्ता

सुना है मैंने होते सबके आसमान अलग ,
होती ज़मीन अलग ,संसार पृथक ।


कितना अच्छा हो ,गर ,मर्म मेरा, हो जाए  तेरा,
भावनाओं  का बोध,भी  एक हो जाए ,तेरा मेरा ।

प्रेमयात्रा की हर मेरी अनुभूति का एहसास ,
केवल न रहे  मेरा ,
 दबे पाँव तेरी आहट तो पहचान ली थी  मैंने,
काश  उस कश्मकश में ,भी ,साझा होता तेरा ।

कि प्रेम की कसौटी में ,यही आखिरी कसर ,
काश ऐसा हो पाता ऐसा
ज़िन्दगी हो  मेरी ,करती तू बसर ।

प्रेम हो यूं प्रगाढ़ , की ,अंतर की दीवारें पर भी न रहे स्वयं का पहरा ,
प्रस्फुटित होती तेरे अंदर ,हर प्रेम की  कली ,से ,महके अंतर्मन मेरा ।

 मैंने सुना , होता प्रेम जब परस्पर ,तो क्यूँ न हो जाए ,
अनुभूति का  धरातल भी हो जाए ,एक,तेरा मेरा ।

ज़्यादा नहीं ,हो चाहे ,कम  ही सही ,
साझा हो पाएं ,कुछ ,हमारे संवेदना के  टुकड़े ही  सही ,
अल्प समय  के लिए ही काश हो
एक ही धरातल पर खड़े हों हम ,
नीला आकाश एक ही हो वहीं  ।

साझा करूँ  फिर  थोड़ा आसमान मेरा ,
साझा करे  ,तू ,ज़मीन तेरी।

कुछ बादल के टुकड़े मेरे आसमा के ,
प्रेम की बूँदें बरसाएं संवेदना मेरी ।

तेरी ज़मीन ,आसमां से बरसते बादल मेरे ,
यूँ आत्मसात हो भावनाएं तेरी मेरी,

मेरे आसमान में उगते सूरज की किरणों से,
सोने सी चमके ज़मीन तेरी।

थोड़े से आसमान में मेरे ,हो तारों की टिमटिम ,
अपने एक से संसार में ,रजनी बरसे रिमिझिम ,

एक थोड़े से आसमान से  सफ़ेद  सा चाँद निकले हर रात,
तेरी ज़मीन को सफेदी से ढक ,साझा रंग, रंग  जाएँ ज़ज़्बात ।

ठण्डा सा चाँद  मेरा ,ठंडी सी हो तेरी  ज़मीन  ,
सोए अपना जहां ,ओढ़ ,निंदिया की चादर हसीं ।

सुना तो मैंने है ,होते सबके संसार अलग
होते आसमान अलग ,होती ज़मीन अलग ।
प्रेम की डोर थामे ,काश,
साझा हो पाए कुछ थोड़ा सा आकाश मेरा  ,
कुछ थोड़ी  सी ज़मीन तेरी …

है जब  साझे का रिश्ता तेरा मेरा ,
 काश हो  भावनाओं का संसार ,एक, तेरे मेरा  …








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